Monday 16 January 2017

सैनिकों को खराब क्वॉलिटी का खाना मिलने से देशवासी आहत


पिछले हफ़्ते बीएसएफ के कॉन्स्टेबल तेज बहादुर यादव ने सोशल साइट्स पर विडियो पोस्ट किया। इसमें उन्होंने अपने ही अधिकारियों पर आरोप लगाया कि वे राशन बेच देते हैं। उनका आरोप था कि सैनिकों के खाने की क्वॉलिटी अच्छी नही होती। अपनी बात को पुख़्ता करने के लिए तेज बहादुर ने सुबह के नाश्ते और रात के डिनर में मिले खाद्य पदार्थों का विडियो बनाकर पोस्ट किया। तेज बहादुर का विडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो गया। इसके बाद केंद्र सरकार और बीएसएफ के आला अफ़सर सकते में आ गए। पूरा देश विडियो देखकर दंग रह गया।

तेज बहादुर बीएसएफ की 29वीं बटालियन के सदस्य हैं। वह जम्मू-कश्मीर में तैनात हैं। उन्होने आरोप लगाया कि यहां पर जवानों को ठीक से खाना नसीब नहीं हो रहा है और कई बार उन्हें भूखे पेट सोना पड़ता है। उन्होंने कहा कि वह मुश्किल हालात में ड्यूटी कर रहे हैं, लेकिन सैनिकों को मिलने वाले भोजन की गुणवत्ता ठीक नही रहती। ऐसे में सैनिक कैसे ड्यूटी करेगा।  

आमतौर पर यह माना जाता है कि सेना अपने सैनिकों के खान-पान, रहन-सहन पर विशेष ध्यान देती है और सैनिकों को कई तरह के विटामिन और पौष्टिक आहार दिया जाता है। लेकिन तेज बहादुर का विडियो अलग ही कहानी बयां कर रहा था। मामला सेना तथा सैनिकों के खाने से जुड़ा था। लिहाजा, पूरे देश का इमोशन तेज बहादुर के साथ था। गृह मंत्रालय के साथ ही पीएमओ ने भी इस मामल में विशेष दिलचस्पी दिखाई। गृह मंत्री राजनाथ सिंह इस पूरे मामले पर बीएसएफ से रिपोर्ट मांगी। बीएसएफ की एक उच्च स्तरीय कमेटी ने मौके का दौरा किया।

शायद यह एक ऐसा पहला मामला था जब किसी सैनिक ने सोशल मीडिया पर सेना में मिल रहे घटिया खाने की शिकायत की। सेना देश की सुरक्षा करती है। सैनिक देश की सुरक्षा के साथ कोई समझौता नही करते, जबकि तथाकथित कुछ अधिकारी चंद रुपयों की खातिर उनके खाने के साथ समझौता कर ले रहे हैं। सैनिकों को घटिया किस्म का खाना मिलने से देशवासी आहत हैं। 
दिल्ली के टैगोर इंटरनेशनल स्कूल की टीचर हरप्रीत कौर कहती हैं, सैनिक अपने  घर और परिवार से दूर रहता है, हमारी सुरक्षा के लिए। अगर उसे अच्छा खाना नहीं मिल रहा है तो यह बेहद निराशाजनक है।

बिजनेसमैन अजय गुर्जर कहते हैं, यह जानकर हमें बहुत कष्ट हुआ कि हमारे सैनिकों को खराब क्वॉलिटी का खाना मिल रहा है। सैनिकों को अच्छी डाइट मिलनी चाहिए ताकि वे ठीक से ड्यूटी कर सकें।

दिल्ली यूनिवर्सिटी के लॉ के छात्र कुमार संजय कहते हैं, सेना देश की धड़कन है और सैनिक हमारे आंख और कान। सेना में सैनिकों को घटिया किस्म का खाना देना निंदनीय है।

बीएचयू वाराणसी के एमए हिन्दी के छात्र आनंद प्रताप सिंह कहते हैं, हमें ऐसी उम्मीद भी नहीं थी कि सैनिकों को इस तरह का खाना दिया जाता होगा। विडियो में दाल और अन्य खाने चीजें देखकर मेरी आंख से आंसू निकल पड़े। खाना देखकर मेरा दिल बहुत आहत हुआ।

फिलहाल तेज बहादुर मामले की रिपोर्ट बीएसएफ ने गृह मंत्रालय को सौंप दी है। गृह मंत्रालय ने रिपोर्ट पीएमओ को फॉरवर्ड कर दी है। इस रिपोर्ट में कहा गया है कि तेज बहादुर की शिकायत सही नहीं है। तेज बहादुर को जो खाना दिया गया था, उसमें दाल-रोटी के साथ मछली भी थी।

तेज बहादुर की शिकायत जांच में भले ही सही न पायी गई हो, लेकिन अगर इस पूरे मामले में तनिक भी सच्चाई है, तो यह देशहित के लिहाज से ठीक नहीं है। सेना के साथ देशवासियों का भावनाएं जुड़ी हैं, इसलिए यह विडियो सामने आने से देशवासी आहत हुए।

Tuesday 6 December 2016

फ्लॉप शो साबित हो सकता है नोटबंदी का फ़ैसला

Photo Credit: IANS
पीएम ने 8 नवबंर को नोटबंदी का ऐलान किया। सरकार ने दावा किया कि कालाधन सामने लाने के मक़सद से यह फ़ैसला किया गया है। इस फ़ैसले के तहत 500 और 1000 रूपये के रूपये के पुराने नोट बंद कर दिये गये। इसके बाद पूरे देश में पैसे के लिए हाय-तौबा मची हुई है। हर बैंकों के बाहर लोगों की लंबी-लंबी कतारे लग रही हैं। कश्मीर से कन्याकुमारी और असम से गुजरात तक एक-ही जैसा माहौल है। कुछ लोग पैसा जमा करने के लिए लाइन में लग रहे हैं तो कुछ पैसा निकालने के लिए।

नोटबंदी के इस फ़ैसले का अमीरों पर कुछ ख़ास असर नही पड़ा है। वे अपने पैसे को शेयर और रियल स्टेट में इन्वेस्ट कर रखे हैं। इस फ़ैसले का सबसे ज़्यादा असर देश के आम आदमी पर पड़ा है। देश में करोड़ों ऐसे लोग हैं जिनका कोई बैंक एकाउंट नही है। ये लोग अब भी लेन-देन कैश के माध्यम से ही करते हैं। ये बैंक में जाकर पैसा जमा करने से बेहतर मानते हैं घर में पैसा रखना।

देश का ग़रीब तबका, जिसे दिनभर काम करने के बाद शाम को जो मेहताना (मजदूरी) मिलती है, उससे वह खाने-पीने का जुगाड़ करता है। उसके पास इतना समय नही होता है कि वह बैंक में जाकर पैसे जमा कर सके। अगर वह कुछ रूपये बचाकर बैंक में जमा करने चला भी गया तो फिर उसे शाम को भोजन के लिए सोचना पड़ सकता है।

बेशक आप दिल्ली-एनसीआर जैसे बड़े शहर में चाय पीकर पेटीएम करते हों, लेकिन अगर आप बनारस के किसी गांव में जाकर पेटीएम करना चाहेंगे, तो यह बहुत हद तक मुमकिन नही है। गांव में मोबाईल फोन तो पहुंच गये है लेकिन उसे चार्ज करने के लिए (इलेक्ट्रिक) बिजली की समस्या आज भी बरकरार है । उत्तर प्रदेश के मिर्ज़ापुर में कुछ गांव तो ऐसे हैं, जहां के लोगों के पास मोबाईल फ़ोन तो है लेकिन उसे चार्ज करने के लिए मीलों सफ़र करना पड़ता है, ऐसे में कैशलेस इंडिया का सपना एक कोरी कल्पना ही साबित होगी ।

बैंकों की पहुंच अभी भी गांव में कम ही है । वैसे तो गांव में पहले से ही कुछ हद तक कैशलेस व्यवस्था चल रही है । गांव में आज भी कमोडिटी एक्सचेंज (वस्तु-विनिमय) की व्यवस्था कायम है । गांववाले आपस में एक-दूसरे से अनाज का लेन-देन करते हैं । बावजूद इसके, सब्जी तथा अन्य सामान खरीदने के लिए लोगों को कैश का उपयोग करना पड़ता है। 

कुछ लोग नोटबंदी के फ़ैसले की आलोचना कर रहे हैं और कुछ लोग तारीफ़। फिलहाल मौजूदा वक़्त में लोगों को इससे परेशानी का सामना करना पड़ रहा है। 

कालेधन को समाप्त करने के लिहाज से सरकार का नोटबंदी का फ़ैसला काबिले-तारीफ़ है, लेकिन सरकार अभी तक पर्याप्त धन मुहैया कराने में नाकाम ही रही है। सरकार को कैश की समस्या का जल्द ही समाधान करना होगा। अगर सरकार कैश की पर्याप्त व्यवस्था करने में नाकाम हुई तो नोटबंदी का फ़ैसला फ्लॉप शो साबित हो जायेगा।

चुनौतीपूर्ण होगा राष्ट्रगान के फ़ैसले को अमल में लाना

Picture Credit: IANS

देश में इस वक़्त राष्ट्रगान को लेकर बहस छिड़ी हुई है. बहस की वजह बना है सुप्रीम कोर्ट का आदेश. सुप्रीम कोर्ट ने मध्य प्रदेश के रहने वाले श्याम नारायण चौकसे की जनहित याचिका पर एक अहम फ़ैसला सुनाते हुए आदेश दिया कि सिनेमाघरों में फ़िल्म शुरू होने से पहले राष्ट्रगान अनिवार्य रूप से बजाया जाय. साथ ही कोर्ट ने कहा कि सिनेमाघर में राष्ट्रगान बजते समय सभी लोगों को खड़ा भी होना होगा.

पूरे देश में इस आदेश की समीक्षा हो रही है. कुछ लोग इसकी आलोचना भी कर रहे हैं. संविधान के अनुच्छेद 51 (A) के अनुसार, भारत के राष्ट्रीय ध्वज और राष्ट्रगान का सम्मान करना भारत के प्रत्येक नागरिक का कर्तव्य है.

अभी तक लोग सिनेमाघर में मनोरंजन करने के लिए जाते थे लेकिन अब उन्हे राष्ट्रगान भी गाना पड़ेगा. यह देखना अपने आप में बेहद दिलचस्प होगा कि सरकार किस तरह रोमांटिक फ़िल्म देखने के लिए आने वाले प्रेमी-प्रेमिकाओं को राष्ट्रगान गाने के लिए मनाती है. 

महाराष्ट्र के सिनेमाघरों में राष्ट्रगान बहुत पहले से राष्ट्रगान बजाया जाता है. सिनेमाघरों में 60 और 70 के दशक में राष्ट्रगान बजाया जाता था लेकिन लोग सावधान मुद्रा में खड़े नही रहते थे. बीच-बीच में इधर-उधर आते जाते रहते थे, लिहाजा कुछ वक़्त बाद प्रथा समाप्त हो गई.

सुप्रीम कोर्ट ने विजोई इमानुएल व अन्य बनाम स्टेट ऑफ़ केरल व अन्य में वर्ष 1986 में कहा था,“राष्ट्रीय गान बजने के दौरान उसे गाना जरूरी नही है. अगर कोई उसके सम्मान में खड़ा हो जाता है, तो पर्याप्त है.


कोर्ट ने सिनेमाघर में राष्ट्रगान को अनिवार्य करने का फ़ैसला सुना दिया लेकिन इसे अमल में कराने में सरकार को चुनौती का सामना करना पड़ सकता है. कहीं ऐसा न हो कि कुछ तथाकथित राष्ट्रभक्त खुद सिनेमाघर में पहुंचकर क़ानून अपने हाथ में लेकर इस फ़ैसले को लागु न करवाने लगे. सरकार को बहुत ही धैर्य से काम लेना होगा.

Thursday 1 December 2016

नोटबंदी से मंदे पड़े ग़ैरक़ानूनी धंधे


बेशक प्रधानमंत्री ने कालाधन सामने लाने के लिए नोटबंदी का ऐलान किया हो, लेकिन इसका असर ग़ैरक़ानूनी धंधों पर भी पड़ा है. 8 नवंबर की रात प्रधानमंत्री ने 500 और 1000 रूपये के नोट बंद करने का ऐलान किया. इसके बाद कालाधन रखने वालों में खौफ़ का माहौल है. नोटबंदी से कई ग़ैरक़ानूनी धंधे मंदे पड़ गये हैं. हम ऐसे ही कुछ ग़ैरक़ानूनी धंधों पर नज़र डालते हैं –  

1.     सट्टा बाज़ार मंदासट्टा बाज़ार पर नोटबंदी का बहुत गहरा प्रभाव पड़ा है. देश के तकरीबन सभी शहरों सट्टा का बड़ा ग़ैरक़ानूनी कारोबार है लेकिन नोटबंदी के बाद यह मंदा पड़ गया है. इससे सभी सटोरिये खासे परेशान हैं. एक सटोरिये ने बताया कि मैच खत्म होने के बाद पैसों का हिसाब होता है. पुराने नोट सट्टा बाज़ार में नही चल रहे हैं और नये नोटों की कमी है, लिहाजा कोई सट्टा लगाने के लिए तैयार नही है और सटोरिये भी इसमें कम रूचि ले रहे है. सूत्रों के मुताबिक सटोरिये भी अपने पुराने नोटों को ठिकानें लगाने में व्यस्त हैं. 

2.     शराब और ड्रग्स तस्करी में कमी – पहले शाम होते ही देश के महानगरों समेत कई शहरों में शराब की दुकानों पर लम्बी कतारें लग जाती थी. लेकिन नोटबंदी के बाद शराबों की दुकान पर इक्का-दुक्का ग्राहक ही नज़र आ रहे हैं. आबकारी विभाग के सूत्रों की मानें तो, नोटबंदी से सरकारी दुकानों पर शराब की बिक्री में 30 से 40 प्रतिशत की कमी आई है.
      इसके साथ ही ग्रामीण इलाकों में ग़ैरक़ानूनी ढंग से बेची जाने वाली कच्ची शराब और गांजे पर भी असर पड़ा है. नोटबंदी की मार से लोग शराब पीने और ड्रग्स लेने से तौबा कर लिया है और इसके तस्करी में भी कमी आई है. नोटबंदी के बाद एनडीपीएस एक्ट के तहत दर्ज होने वाले केसों में कमी आई है.
3.     सेक्स रैकेट भी प्रभावितनोटबंदी से सेक्स रैकेट का धंधा भी प्रभावित हुआ है. पहले इसके लिए बाकायदा होटल बुक रहते थे लेकिन नोटबंदी के बाद होटलों की बुकिंग में कमी आई है. रेड लाइट एरिया में भी ग्राहकों की संख्या में कमी आई है.

4.     जेबकतरों का आतंक कम 500 और 1000 रूपये के नोट बंद होने के बाद जेबकतरों का आतंक भी कम हो गया है. दिल्ली के नार्थ-ईस्ट ईलाके में जेबकतरे सबसे ज्यादा इस घटना को अंजाम देते है. नार्थ-ईस्ट दिल्ली के डीसीपी अजित सिंगला बताते हैं कि नोटबंदी के बाद जेब कटने की शिकायतें कम आ रही हैं. जेबकतरे पुरानी नोट पर हाथ साफ नही कर रहे हैं और नई नोट लोग काफ़ी संभाल कर रख रहे हैं.

5.     हवाला कारोबार भी ठप्प नोटबंदी की वजह से हवाला कारोबार भी अछूता है. पहले हवाला बाज़ार में प्रतिदिन करोडो रूपये का वारा-न्यारा होता था लेकिन 500 और 1000 रूपये के नोट बंद होने के बाद हवाला कारोबार ठप्प हो गया है. सूत्रों के मुताबिक, हवाला कारोबारी अपने पुराने नोटों को बदलने में व्यस्त हैं. क्राइम ब्रांच के संयुक्त आयुक्त रवीन्द्र सिंह यादव बताते हैं कि नोटबंदी के बाद हवाला कारोबार से जुड़ी कोई शिकायत नही आई है. पहले शिकायतें आती रहती थी और उस पर कारवाई भी जाती थी.

पीएम का नोटबंदी का फ़ैसला एक तीर से कई निशाना साधने का काम कर रहा है. इस फ़ैसले से ये सब ग़ैरक़ानूनी धंधे एक झटके में मंदे पड़ गये हैं. हालांकि कैश की कमी से देश की अवाम को थोड़ी परेशानी भी आ रही है लेकिन सरकार आश्वासन दे रही है कि जल्द ही इससे निज़ात पा लिया जायेगा.           
                               

Tuesday 15 November 2016

आज के दौर में विनोबा भावे की प्रासंगिकता

        Guest Blog                                                                            गेस्ट ब्लॉग
Picture Credit: Time Magazine
Written by: Amir Hashmi

आज आचार्य विनोबा भावे की पुण्य तिथि है । भूदान आंदोलन के प्रणेता के रूप में हम उन्हें जानते हैं। 'जय जगत' का नारा उन्होंने दिया। स्नेह के साथ रहना, सहजीवन को अपनाना, किसी से बैर नहीं पालना। ये उन के लोक मन्त्र थे ।  'सर्वोदय' का उनका विचार आज भी जरूरी है ।

उन्होंने जीवन-जगत के नाना व्यवहारों पर वैज्ञानिक दर्शन दिया है । वे प्रगतिशील सोच वाले थे । 22 भाषाओँ के जानकार थे ।  हिंदी के उपासक थे । गाय को लेकर उनका वैज्ञानिक चिन्तन था । देश में गौ वध पर प्रतिबन्ध की मांग को ले कर वे आमरण अनशन पर बैठ गए थे । केंद्र ने झूठा वादा कर के उनका अनशन तुड़वा दिया था ।  कुछ दिन बाद ही उनका निधन (15 नवम्बर 1982) हो गया ।

कुछ लोग उन्हें सरकारी सन्त भी कह देते हैं । इस देश में चुके लोगों की लंबी सूची हैवे गाँधी को अपशब्द कहते हैं, राम-कृष्ण या किसी भी महापुरुष की निंदा करते मिल जाते हैं । ये वे लोग हैं जो जीवन में कुछ नहीं करते, सूरज को ढ़कने की कोशिश में लगे रहते हैं । अगर एक बार हम विनोबा को पढ़े, समझे, तो पता चलेगा की वे आज भी बेहद प्रासंगिक है ।

 "टाइम" मैगज़ीन ने उन्हें अपने कवर पेज पर जगह दिया था । "टाइम" जैसी पत्रिका ने उन्हें समझा था, और हम..?

                      लेखक आमिर हाश्मी एक्टर, फिल्म निर्माता और समाजसेवी हैं 

Disclaimer: लेख में व्यक्त किये विचार निजी है. लेखक का उद्देश्य किसी की भावनाओं को ठेस पहुचना नही है.

Friday 7 October 2016

राजस्थान से जल संरक्षण की तरक़ीब सीख रहा दक्षिण अफ्रीका

जल संरक्षण मॉडल के बारें में जानकारी प्राप्त करते हुए दक्षिण अफ्रीका के प्रतिनिधि

राजस्थान भारत का ऐसा राज्य है जिसे सूखे की समस्या सबसे ज़्यादा जूझना पड़ता है। सूखे से निपटने के लिए राजस्थान सरकार ने मुख्यमंत्री जल स्वावलंबन अभियान की शुरूआत की। दक्षिण अफ्रीका सूखे से निपटने की इस तरक़ीब से बहुत प्रभावित हुआ है और उसने राजस्थान से जल संरक्षण की यह तरक़ीब सिखने का निश्चय किया है।

पिछले दिनों राजस्थान में आपदा प्रबंधन विषय पर ब्रिक्स देश के मंत्रियों का दो दिवसीय सम्मेलन आयोजित किया गया था। उस सम्मेलन में राजस्थान सरकार ने मुख्यमंत्री जल स्वावलंबन अभियान के तहत एक प्रदर्शनी लगाई थी। दक्षिण अफ्रीका का एक प्रतिनिधि मंडल भी सम्मेलन में हिस्सा लेने के लिए आया था।

दक्षिण अफ्रीका के प्रतिनिधि मंडल दल के प्रमुख वहां के मंत्री डेस वेन रोयीन कर रहे थे। उन्हे राजस्थान के जल संरक्षण का मॉडल सूखे से निपटने के लिए मुनासिब लगा। सूखे से निपटने के लिए दक्षिण अफ्रीका इसे अपने देश में अपनाने की तैयारी कर रहा है।
       
दक्षिण अफ्रीका पिछले तकरीबन 30 सालों से सूखे की मार झेल रहा है। दक्षिण अफ्रीका में जल संरक्षण करने का कोई सिस्टम नही है। दक्षिण अफ्रीका के सहकारी प्रशासन एवं परंपरागत मामलों के मंत्री डेस वेन रोयीन ने कहा कि वे पिछले तीस वर्षों से पानी को व्यर्थ में बहा रहे है। वाटर हार्वेभस्टग एक ऐसा माध्यम है जिसके जरिए व्यर्थ में बह रहे  पानी का भी प्रभावी उपयोग किया जा सकता है।
    
दक्षिण अफ्रीका का प्रतिनिधि दल जल संरक्षण के काम को देखने के लिए उदयपुर के बावडी गांव भी गया। दल ने जल संरक्षण के काम को बारिकी से देखा और जल संरक्षण की तरक़ीब के बारे में जानकारी हासिल किया।


क्या है मुख्यमंत्री जल स्वावलंबन अभियान
राजस्थान की मुख्यमंत्री वसुन्धरा राजे ने जनवरी 2016 में इस अभियान की शुरूआत की। इस अभियान के तहत वर्षा का जो जल व्यर्थ में बहता था,  उस जल को जगह-जगह इकट्ठा किया जाता है। यह योजना बहुत ही कारगर सिद्ध हो रही है। इससे राजस्थान में जल संकट को कम किया जा सकता है। इससे भूमिगत जल का स्तर भी बढ़ेगा। राजस्थान की मुख्यमंत्री बसुन्धरा राजे का कहती हैं, जल संरक्षण होगा तो भू-जल बढ़ेगा, सूखे नदी-नालों में पानी आएगा और एक रिवर बेसिन से दूसरे रिवर बेसिन में पानी जाएगा जिससे इसका सदुपयोग होगा।

मुख्यमंत्री जल स्वावलंबन योजना को आम जनमानस का व्यापक समर्थन
सूखे व जल संकट से निपटने के लिए चलाये गये इस अभियान को राजस्थान के आम जनमानस का व्यापक समर्थन प्राप्त है। इस अभियान को किसानों और अधिकारियों का भी समर्थन खुले दिल से प्राप्त है। वहां के लोगों को यह पता है कि इस अभियान के सुखद परिणाम आने वाले दिनों में देखने को मिलेंगे, जब भूमिगत जल का स्तर बढ़ेगा तो, इससे पीने व सिंचाई के लिए पानी आसानी से उपलब्ध होगा। इस अभियान को सफल बनाने के लिए राजस्थान के प्रदेशभर के पुलिसकर्मियों ने अपना एक दिन का वेतन दिया था।

राजस्थान सरकार का यह अभियान बेहद काबिलेतारीफ़ है। यह राजस्थान की अवाम के लिए मील का पत्थर साबित होगा। बेशक इस अभियान की शुरूआत भारत के अन्य राज्यों में होने में देर हो, लेकिन दक्षिण अफ्रीका ने इसे अपने यहां लागु करने की कोशिश शुरू कर दिया है। सरकार को इस अभियान को पूरे देश में चलाना चाहिए। इस अभियान से पूरे देश के भूमिगत जल के स्तर में सुधार किया जा सकता है, जिससे कृषि कार्य को बढ़ावा मिलेगा।

Friday 2 September 2016

अरूणाचल प्रदेश को टुरिस्ट हब के रूप में विकसित करने की तैयारी

Picture Credit: Arunachal Tourism Facebook Page

अरूणाचल प्रदेश को भारत का आर्किड स्टेट कहते है क्योकि यहां 500 से भी अधिक प्रजाति के आर्किड पाये जाते है। यह राज्य भारत के पूर्वी छोर पर स्थित है, इसलिए इसे उगते सूरज का प्रदेश भी कहते है। टुरिस्टों को लुभाने के लिए केन्द्र सरकार नार्थ-ईस्ट के राज्यों को टुरिस्ट हब के रूप में विकसित करने की तैयारी कर रही है। नार्थ-ईस्ट में अरूणाचल प्रदेश, असम, मणिपुर, मेघालय, मिज़ोरम, नागालैण्ड और त्रिपुरा सहित कुल सात राज्य है। इन सभी राज्यों को अलग-अलग चरणों में टुरिस्ट हब के रूप में विकसित किया जायेगा। पहले चरण में अरूणाचल प्रदेश को विकसित किया जायेगा ।

अरूणाचल प्रदेश में पर्यटन की अपार संभावनायें है। इसी को मद्देनज़र रखते हुए अरूणाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री पेमा खांडू ने शुक्रवार को केन्द्रीय पर्यटन मंत्री महेश शर्मा से दिल्ली में मुलाक़ात की । इस मुलाक़ात में अरूणाचल प्रदेश के विकास और पर्यटन को बढ़ावा देने सहित अन्य कई महत्वपूर्ण मुद्दों पर चर्चा हुई। अरूणाचल में पर्यटन स्थलों के साथ कई धर्मों के तीर्थस्थल भी है।

अरूणाचल प्रदेश पर्यटन की दृष्टि से भारत का एक प्रमुख राज्य है। अरूणाचल में विविध प्रकार की वनस्पति और जीव-जन्तु पाये जाते है । इसका अधिकांश भाग हिमालय से ढका हुआ है। भारत में सबसे पहले सूरज अरूणाचल के त्वांग में ही निकलता है, इसे देखने के लिए पर्यटन बड़े पैमाने पर आते है। यहां का शान्त व प्राकृतिक माहौल ही इसकी विशेषता है। वर्षों पहले विलुप्त हो चुके जीव और कीट यहां आसानी से देखने को मिल जाते है। बड़ी संख्या में पर्यटक बर्फबारी का लुत्फ़ उठाने के लिए यहां आते है। राफ्टिंग के लिए भी यह बहुत ही उपयुक्त जगह है। अरूणाचल के विभिन्न जनजातियों के लोक-संगीत और उत्सव तथा हरे-भरे जंगल तथा और ऊँचे-ऊँचे पहाड़ पर्यटकों को बरबस ही अपनी ओर आकर्षित करते है ।

अरूणाचल के प्रमुख पर्यटन स्थल
यूं तो पूरे अरूणाचल प्रदेश में ही प्राकृतिक छटा निहारने को मिलती है लेकिन हम आपको कुछ प्रमुख पर्यटन स्थल के बारे में बताते है।
Picture Credit: Arunachal Tourism Facebook Page
1.   नामदाफ़ा नेशनल पार्क- यह पार्क तकरीबन 1985 वर्ग किमी में फैला हुआ है। सरकार ने 1983 ने इसे टाइगर रिजर्व पार्क घोषित किया। इस पार्क में हरे-भरे पेड़-पौधे और वनस्पतियां देखने को मिलती है, जो पर्यटकों को पर्यटकों को लुभाते है । वर्षों पहले विलुप्त हो चुके जीव यहां देखने के लिए मिल जाते है, इसलिए वन्य-जीव पर शोध कर रहे रिसर्च के छात्र भी बड़े पैमाने पर आते है। इस पार्क में सफेद पंखों वाली वुड डक पक्षी देखने को मिल जाती है। यह भारत का ही नही, बल्कि दुनिया का एकमात्र ऐसा पार्क है जहां बाघ की चार प्रजातियां पायी जाती है। प्रतिवर्ष लाखों की संख्या में पर्यटक इस पार्क में घुमने के लिए आते है।

2   2. एलॉन्ग- यह प्राकृतिक वातावरण के बीच स्थित एक छोटा-सा क़स्बा है। यह समुन्द्री तल से 300 मीटर की ऊँचाई पर स्थित है। गर्मी के मौसम में बडी संख्या में पर्यटक यहां आते है। यह प्राकृतिक सुन्दरता से भरपुर स्थान है, जो पर्यटकों को बरबस ही अपनी ओर आकर्षित करता है।

3    3. पौराणिक गंगा झील- ख़ूबसूरत जंगल के बीच यह झील स्थित है। इसकी दूरी ईटानगर से तकरीबन 6 किमी है। जंगल में सुन्दर पेड़-पौधे और वन्य जीव देखने को मिलते है। यहां आने वाले पर्यटक झील और जंगल में सैर करते है। यह अरूणाचल का प्रमुख पर्यटक स्थल है।

4      4. पामुर खेर- अरूणाचल के अन्य पर्यटन स्थलों की तरह यह भी प्राकृतिक माहौल में स्थित है। यह हिमालय की तलहटी में बसा हुआ है। यहां से पर्यटक हिमालय की कई चोटियों को आसानी से देख सकते है। यहां पर तिब्बत-बर्मा भाषा बडे पैमाने पर बोली जाती है। यहां इण्डो-मंगल प्रजाति से संबंध रखने वाले लोग रहते है। ये लोग फरवरी के पहले हफ्ते में न्योकुम उत्सव मनाते है । बडी संख्या में पर्यटक इस उत्सव में शामिल होने के लिए आते है ।    

अरूणाचल को पर्यटन के रूप में विकसित करने में आने वाली चुनौती 
प्रकृति की सुरम्य गोद में स्थित यह राज्य आज भी विकास की बाट जोह रहा है। भारत के पूर्वी छोर पर स्थित यह राज्य चीन से सीमा से सटा हुआ है। इस राज्य में भारत का चीन के साथ सीमा विवाद सुलझ नही पाया है, आये दिन चीन भारत की सीमा में घुस आता है। टुरिस्ट इस विवाद की वजह से अरूणाचल जाने से बचने की कोशिश करते है। अरूणाचल में ऐसे सैकड़ो गांव है जो आज भी बिजली की सुविधा से महरूम है। शहरों में तो पक्की सड़के है, लेकिन शहरों से दूर गावों में पक्की सड़के नही है। दूर-दराज के गांवों में मोबाईल में नेटवर्क ही नही रहता है,  टुरिस्ट मोबाईल काम करनी की वजह से परेशानी का सामना करते है, इस परेशानी से दो-चार होने के वाद टुरिस्ट दोबारा इस तरफ़ रूख़ नही करना चाहते है। भारत-चीन बॉर्डर से तकरीबन 50-60 किमी दूर तक आने-जाने के लिए सड़के नही है । अरूणाचल के सभी गांव अपने आप में पर्यटन केन्द्र है। इन सभी गांवों को विकसित करके पर्यटकों को लुभाया जा सकता है।

       अरूणाचल में ट्रेकिंग और राफ़्टिंग एड़वेंचर का भी पर्यटक लुत्फ़ उठा सकते है। ट्रेकिंग के लिए अक्टुबर से मई तक का समय सबसे उपयुक्त होता है। केन्द्र सरकार नार्थ-ईस्ट के पर्यटन केन्दों को विकसित करने के प्रति संजीदा दिखाई दे रही है। केन्द्र सरकार राज्यों के साथ मिलकर पर्यटकों को लुभाने के लिए कई तरह की योजनाएं बना रही है, उसमें से हवाई किराया कम करने की योजना भी प्रमुख है। टुरिस्ट हब के रूप में विकसित करने से केन्द्र व राज्य सरकार को आर्थिक लाभ होगा।